ज़िन्दगी काटने में इतना वक़्त निकल गया
के जीने का तो कभी मोका ही नहीं मिला
और जब जीने का पाठ समज में आया
तो देखा ये किताब तो शुरू से अपने ही हाथ में थी
हवाओं के झोंको ने बस पन्ने पलट दिए
और खुद की खता भी देखो इतनी हिम्मत भी न थी के उन पन्नो को वापिस पलट दे
हिम्मत कर जो उन पन्नो को पलट कर देख लिया होता तो आज शयद खुद से कोई शिकायत नहीं होती
के जीने का तो कभी मोका ही नहीं मिला
और जब जीने का पाठ समज में आया
तो देखा ये किताब तो शुरू से अपने ही हाथ में थी
हवाओं के झोंको ने बस पन्ने पलट दिए
और खुद की खता भी देखो इतनी हिम्मत भी न थी के उन पन्नो को वापिस पलट दे
हिम्मत कर जो उन पन्नो को पलट कर देख लिया होता तो आज शयद खुद से कोई शिकायत नहीं होती
commendable... :)
ReplyDeleteThnks Aman
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ReplyDeletenice one razia
ReplyDeletenice one razia
ReplyDeleteThnks savita
DeleteAwesome ;-)
ReplyDeleteThnks Raman
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