कभी अकेले होकर भी कोई साथ महसूस होता है
ये भीड़ में तनहा दिल भी कहाँ महफूज़ होता है
कभी देखूं जहाँ में के दर्द कितने हैं
उतने आशिक नहीं हैं शायद, बेदर्द जितने हैं
ये भीड़ में तनहा दिल भी कहाँ महफूज़ होता है
कभी देखूं जहाँ में के दर्द कितने हैं
उतने आशिक नहीं हैं शायद, बेदर्द जितने हैं
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