आज फिर रोई क्यूंकि वो सच सामने आया जिसे जुठ्लाती जा रही थी
आज फिर रोई क्यूंकि वो चेहरा सामने आया जिसे खुद से छुपाती जा रही थी
आज आंखें भरी क्यूंकि उसी ने जवाब माँगा जिसके सहारे खड़ी थी
आज फिर रोई क्यूंकि कोई सपनो में बना महल टूट गया
आज फिर रोई क्यूंकि किसी ने मीठी नींद से जगा दिया
आज रोई क्यूंकि कोई समजने वाला नहीं था
आज रोई क्यूंकि कोई समजाने वाला नहीं था, कोई बहलाने वाला नहीं था
आज फिर रोई क्यूंकि कोई सँभालने वाला नहीं था
आज फिर रोई क्यूंकि वो चेहरा सामने आया जिसे खुद से छुपाती जा रही थी
आज आंखें भरी क्यूंकि उसी ने जवाब माँगा जिसके सहारे खड़ी थी
आज फिर रोई क्यूंकि कोई सपनो में बना महल टूट गया
आज फिर रोई क्यूंकि किसी ने मीठी नींद से जगा दिया
आज रोई क्यूंकि कोई समजने वाला नहीं था
आज रोई क्यूंकि कोई समजाने वाला नहीं था, कोई बहलाने वाला नहीं था
आज फिर रोई क्यूंकि कोई सँभालने वाला नहीं था
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