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Saturday, 26 March 2016

अजीब है ये कागज़ और कलम की दास्ताँ


अजीब है ये कागज़ और कलम की दास्ताँ भी
वो बातें जो बातों से की नहीं जाती
वो यादें जो यादों से निकल नहीं पाती
अजीब है उन यादों को शब्दों में पिरोने की दास्ताँ भी
अजीब है ये कागज़ और कलम की दास्ताँ भी

क्या मज़ा है दिल को निकाल कागज़ पर रखने का
क्या मज़ा है बेरस से शब्दों में रस भर कर चखने का
क्या मज़ा है खुद के अंदर झांक कर देखने का
क्या मज़ा है गम की हवाओं में सुलगते दिल को सेकने का
क्या खूब है नज़ारा कोई दिल की आवाज़ सुन रहा है
देखो ज़रा गौर से वो दिल की आवाज़ से अलफ़ाज़ बून रहा है

वो जो दिल को निकल कागज़ पर रख देते है
वो जो कलम से ज़िन्दगी को लिख देते है
वो जो कागज़ कलम में खुद को ढूंढ पाते है
वो जो बाकि दुनिया से अंजान से हो जाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो लोग जो बातों से बातें कर नहीं पाते
वो लिख पाते हैं
वो चेहरे जो दर्द को छुपा पाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो कुछ चेहरे जो अक्सर मुस्कराए हुए दिखाई दे जाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो कुछ लोग जो दुनिया से अंजान हो जाते हैं
लिख पातें है
वो लिख पाते हैं


Wednesday, 18 March 2015

कहानिया

मैंने कई कहानिया सुनी थी बचपन में
वो दो प्रेमी हुआ करते थे
वो मिल नहीं पाते थे तो मर जाते थे
जान उनकी अपने बजाए एक दुसरे में रहती थी
चोट लगे एक को  दुसरे की आंख बहती थी

वो बचपन था मैं सुनती थी समजती थी,
समज जादा नहीं आता था 
पर जो सुनती थी जो सोचती थी
एक ख़ाब सा बन जाता था
बस यही समजा हर बार के कुछ प्यार जैसा होता है
छोटा सा शब्द है पर हर कहानी का हिस्सा होता है
रब की बनाई हर चीज़ में से सब से हसीन है
ये सब कहानिया वो ऊपर कहीं बनी है

बीत गया वो वक़्त जिसमे ख़ाब बनाए थे 
पाँव रखा जब दुनिया में तो ढूंडा प्यार कहाँ है
मैंने कहानिया सुनी थी बचपन में, 
वो कहानिओ के किरदार कहाँ हैं
फिर वो कुछ लोग मिले जो प्यार की बातें करते थे
मैं समजी शयद वोही है जो वो कहनिया बुना करते थे
बीता कुछ वक़्त तो जाना वो कहानिया आज की कहाँ हैं
आज कल वो प्यार वाले बस वक़्त की बातें करते हैं
सब उलझे है अपने में, कहाँ दुसरो के लिए जीया करते है

उन कहानिओ को मैं अब भी बहुत याद किआ करती हूँ
बहुत आगे निकल आए हम, कभी पीछे मुड देख लिया करती हूँ
काश वो कहानिओ वाला वक़्त फिर से कहीं मिल जाए
मैं भी बनू इक किरदार उसका, इक और किरदार मिल जाए
थोडा ठहर जाए वक़्त भी
थोड़ी रफ़्तार धीमी हो
मुझे भी हो जाए प्यार
और इक कहानी मेरी हो

Thursday, 17 April 2014

कभी रोऊ इतना

मन करता है कभी रोऊ इतना के कोई आंसूं पोंछने भी न आए
चिल्लाऊँ इतना के कोई सुन ही न पाए
इतना कहू के कोई समजना न चाहे
इतने करू सवाल के कोई जवाब न मिल पाए
कभी मन करता है छोड दूँ खुद को
बहने दूँ
गिर जाने दूँ
चोट खाने दूँ और फिर
और फिर बस ख़तम हो जाने दूँ

बस अब चल तो ली अकेली
अब और कितना
जी भी ली अकेली
अब और कितना
इससे अच्छा शायद वो दूसरा जहाँ होगा
कोई उम्मीद तो न होगी किसी से
न कोई बहाना होगा
न कोई बहाना हसने का
न कोई बहाना रोने का
न कोई बहाना आंसुओं को आँखों में रख लेने का
न कोई बहाना कुछ ज़ादा हस लेने का
न कोई बहाना न कोई सवाल होगा
न कोई सवाल न कोई जवाब होगा
बस चुप सी होगी ज़िन्दगी
बिना किसी उम्मीद के बड़ी चुप सी होगी ज़िन्दगी

Saturday, 8 March 2014

Dedicated To Girls

लिबास से न होती इज्ज़त मेरी तो कई बार बच जाती इज्ज़त लुटने से
शयद कुछ कम होती मैं बेबस
गली गली हर मोड़ पे डर के साथ चलती हूँ
उतर न जाये ओडी चादर हर बार डरती हूँ

एक लिबास से इज्ज़त को हम कैसे जाँच लेते है
एक ऊपर ओडी चादर को खुद से बड़ा मान लेते हैं
जब तक होसला है मुजमे
मेरी इज्ज़त भी सलामत है
मुझे उस बेचारी निगाह से न देखो
मेरी ज़िन्दगी अभी सलामत है

मैं बहुत बंधी हूँ बेडियो में
कैसे उड़ने के ख़ाब देखूं
ज़रा कोई हाथ लगादे मुजको
मैं डरने लगती हूँ
इज्ज़त खो न जाए कहीं
आहें भरने लगती हूँ
इज्ज़त न जाने किस चिड़िया का नाम है
कभी मेरे कपड़ो को इज्ज़त कहते है
कभी मेरे लिबास की लम्बाई को
कभी मेरी जुकी निगाह से इज्ज़त का अंदाज़ा होता है
कभी देखते नहीं सोच की गहराई को
काबिल हूँ मैं कितनी कोई जानने की कोशिश नहीं करता
कितनी आगे बढ़ गई हूँ किसी को फरक नहीं पड़ता
मेरी निगाहे ज़मीन को छोड आस्मां पर टिक गई है
फिर भी ज़मीन पर रेंगते कीड़ो से डरना पड़ता है मुझे
मैं कमज़ोर हूँ कईओं से जानती हूँ मैं
पर बेबस होकर राहों पर चलना पड़ता है मुझे

शायद कभी न रोक पाऊं मैं खुद पर हुए अत्याचार को
पर बेचारी न समजना मुझे तो एहसान होगा
दर्द जो मुझे मिला है उसकी सजा होगी
पर जो बाँट न सको दर्द तो बडाना न इसे तो एहसान होगा
शरीर मेरा मिटटी है दर्द होगा मेरी रूह को
वो दर्द जो समज सके बस वोही सामने आए तो एहसान होगा

थोड़ी आजादी दो मुझे उड़ने की
मेरी इज्ज़त बनाओ मेरी सोच को
मेरी इज्ज़त बनाओ मैं जो कर सकती हूँ
मेरी इज्ज़त बनाओ जो मैं बन सकती हूँ
मेरी इज्ज़त बनाओ जो होसला है मुजमे
मेरी इज्ज़त बनाओ जो शक्ति है मुजमे
मेरी इज्ज़त बनाओ मेरी चाह को
मेरी इज्ज़त बनाओ मेरी राह को
मेरी इज्ज़त बनाओ मेरी रूह को
शरीर तो मिटटी है जो जरुरी है ता जो जिंदा रह सकू
इज्ज़त बनाओ उसको जिससे जीती हूँ मैं

इज्ज़त बनाओ मुजको, मेरी रूह को


Tuesday, 4 March 2014



वो अक्सर मुझसे आकार खाबों में मिला करता है
मेरे आंसुओं को कभी मुस्कराहट में बदल दिया करता है
क्या हुआ जो चेहरा उसका देख नहीं पाती
एहसास तो उसका हर वक़्त पास ही रहता है
क्या हुआ जो बातें उसकी सुन नहीं पाती
प्यार का इजहार तो हर वक़्त खास ही रहता है

वो अक्सर आकार खाबों में मुझसे बातें किया करता है
ज़िन्दगी को खाबों की तस्वीर बना दिया करता है
कभी पूछती हूँ उससे क्या सिर्फ खाबों में मिलोगे तुम
जवाब में वो मुझको उलझा सा दिया करता है

जो ज़िन्दगी में आ गया मैं तो ख़ाब किसके देखोगी
मुझमे मंजिल पा गई तो राह किसकी देखोगी
खाबों में आया हूँ तो ज़िन्दगी में भी आऊंगा
वक़्त की मार है तुझे फिर कभी सम्जाऊंगा
जिस राह पे चल रही है उस राह पे चलती रह
मिलूँगा तुझे इन्ही पर ऐतबार करती रह
अभी ख़ाब का हिस्सा हूँ, कभी ज़िन्दगी का बन जाऊंगा
कैसा ये रिश्ता है अपना तुझे तब समझा पाउँगा

Wednesday, 5 February 2014

ख़ाब अब भी अधूरे है

कभी कभी हम कुछ ख़ाब देखते है
और एक दिन हमे लगता है वो ख़ाब पुरे हो गए
पर उसे पता है के ख़ाब अब भी अधूरे है

मुस्कराहट नहीं है होठो पर तो ख़ाब अब भी अधूरे है
बेचेन है जो मन तो ख़ाब अब भी अधूरे है
तलाश है आँखों को किसी की तो ख़ाब अब भी अधूरे है
सवालों के जवाब जो पास नहीं तो ख़ाब अब भी अधूरे है
पता है उसको के ख़ाब अब भी अधूरे है
पता है खुद को के ख़ाब अब भी अधूरे है

हाथ में है वो सब जिसकी चाहत थी कभी
पर पास में वो नहीं जिसे चाहा करते थे
कुछ वो शख्स मिले जिनसे मिलने का सपना था कभी
पर वो कुछ चेहरे नहीं जिन संग मुस्कराया करते थे
उस मुकाम पे पहुंचा दिया ज़िन्दगी ने जिसकी कल्पना भी न थी कभी
पर खो दिया उस शख्स को जिस संग ख़ाब सजाया करते थे
खो दिया है खुद को जिसे उड़ना सिखाया करते थे

पता है उसको के ख़ाब अब भी अधूरे है
पता है खुद को के ख़ाब अब भी अधूरे है


Thursday, 26 December 2013

एक छोडू न खुद का हाथ इतना एहसान काफी है

दुनिया देखे गलत नजरो से मुझे परवाह नहीं
डर लगता है खुद की नजरो में गिर जाने से
कोई न भी दे तो साथ तो कोई गम नहीं
डर लगता है भूल कर खुद को खुद में उलझ जाने से

ये दुनिया हर हालात में  मेरे साथ नहीं थी
देखा मैंने खुद को हर हाल से गुजरते है
दुनिया ने आंसू छुपाते मुस्कराते चेहरे को देखा है
देखा मने खुद को आंसुओं में भिखरते है

किसी को क्या पता किस मोड़ पे दिल दुखा था
संभाला खुद ही था खुद को उस मोड़ पर गिर जाने से
कहाँ उदास देख कर मुजको किसी ने गले से लगाया था
संभाला खुद ही था खुद को उस भीड़ में उलझ जाने से

कैसे कर लूँ उम्मीद कोई चाहेगा खुद से जादा
कायम रख लूँ खुद की चाहत इतना एहसान काफी है
कैसे कर लूँ उम्मीद कोई साथ रहेगा हर गम में
एक छोडू न खुद का हाथ इतना एहसान काफी है

दुनिया देखे गलत नजरो से मुझे परवाह नहीं
डर लगता है खुद की नजरो में गिर जाने से
कोई न भी दे तो साथ तो कोई गम नहीं
डर लगता है भूल कर खुद को खुद में उलझ जाने से