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Saturday 26 March 2016

अजीब है ये कागज़ और कलम की दास्ताँ


अजीब है ये कागज़ और कलम की दास्ताँ भी
वो बातें जो बातों से की नहीं जाती
वो यादें जो यादों से निकल नहीं पाती
अजीब है उन यादों को शब्दों में पिरोने की दास्ताँ भी
अजीब है ये कागज़ और कलम की दास्ताँ भी

क्या मज़ा है दिल को निकाल कागज़ पर रखने का
क्या मज़ा है बेरस से शब्दों में रस भर कर चखने का
क्या मज़ा है खुद के अंदर झांक कर देखने का
क्या मज़ा है गम की हवाओं में सुलगते दिल को सेकने का
क्या खूब है नज़ारा कोई दिल की आवाज़ सुन रहा है
देखो ज़रा गौर से वो दिल की आवाज़ से अलफ़ाज़ बून रहा है

वो जो दिल को निकल कागज़ पर रख देते है
वो जो कलम से ज़िन्दगी को लिख देते है
वो जो कागज़ कलम में खुद को ढूंढ पाते है
वो जो बाकि दुनिया से अंजान से हो जाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो लोग जो बातों से बातें कर नहीं पाते
वो लिख पाते हैं
वो चेहरे जो दर्द को छुपा पाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो कुछ चेहरे जो अक्सर मुस्कराए हुए दिखाई दे जाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो कुछ लोग जो दुनिया से अंजान हो जाते हैं
लिख पातें है
वो लिख पाते हैं


8 comments:

  1. "क्या मज़ा है दिल को निकाल कागज़ पर रखने का
    क्या मज़ा है बेरस से शब्दों में रस भर कर चखने का
    क्या मज़ा है खुद के अंदर झांक कर देखने का
    क्या मज़ा है गम की हवाओं में सुलगते दिल को सेकने का
    क्या खूब है नज़ारा कोई दिल की आवाज़ सुन रहा है
    देखो ज़रा गौर से वो दिल की आवाज़ से अलफ़ाज़ बुन रहा है"
    बहुत उम्दा पंक्तियाँ और काव्य संरचना!
    :)

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. Beautiful lines Razia.. Great Work!

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