अजीब है ये कागज़ और कलम की दास्ताँ भी
वो बातें जो बातों से की नहीं जाती
वो यादें जो यादों से निकल नहीं पाती
अजीब है उन यादों को शब्दों में पिरोने की दास्ताँ भी
अजीब है ये कागज़ और कलम की दास्ताँ भी
क्या मज़ा है दिल को निकाल कागज़ पर रखने का
क्या मज़ा है बेरस से शब्दों में रस भर कर चखने का
क्या मज़ा है खुद के अंदर झांक कर देखने का
क्या मज़ा है गम की हवाओं में सुलगते दिल को सेकने का
क्या खूब है नज़ारा कोई दिल की आवाज़ सुन रहा है
देखो ज़रा गौर से वो दिल की आवाज़ से अलफ़ाज़ बून रहा है
वो जो दिल को निकल कागज़ पर रख देते है
वो जो कलम से ज़िन्दगी को लिख देते है
वो जो कागज़ कलम में खुद को ढूंढ पाते है
वो जो बाकि दुनिया से अंजान से हो जाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो लोग जो बातों से बातें कर नहीं पाते
वो लिख पाते हैं
वो चेहरे जो दर्द को छुपा पाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो कुछ चेहरे जो अक्सर मुस्कराए हुए दिखाई दे जाते हैं
वो लिख पाते हैं
वो कुछ लोग जो दुनिया से अंजान हो जाते हैं
लिख पातें है
वो लिख पाते हैं
superb razia :*
ReplyDeleteThnks Aman :)
ReplyDeleteRemarkable Razia... :)
ReplyDeleteThanks avnish :)
ReplyDelete"क्या मज़ा है दिल को निकाल कागज़ पर रखने का
ReplyDeleteक्या मज़ा है बेरस से शब्दों में रस भर कर चखने का
क्या मज़ा है खुद के अंदर झांक कर देखने का
क्या मज़ा है गम की हवाओं में सुलगते दिल को सेकने का
क्या खूब है नज़ारा कोई दिल की आवाज़ सुन रहा है
देखो ज़रा गौर से वो दिल की आवाज़ से अलफ़ाज़ बुन रहा है"
बहुत उम्दा पंक्तियाँ और काव्य संरचना!
:)
Thanks Anugrah :)
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ReplyDeleteBeautiful lines Razia.. Great Work!
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