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Saturday, 8 March 2014

Dedicated To Girls

लिबास से न होती इज्ज़त मेरी तो कई बार बच जाती इज्ज़त लुटने से
शयद कुछ कम होती मैं बेबस
गली गली हर मोड़ पे डर के साथ चलती हूँ
उतर न जाये ओडी चादर हर बार डरती हूँ

एक लिबास से इज्ज़त को हम कैसे जाँच लेते है
एक ऊपर ओडी चादर को खुद से बड़ा मान लेते हैं
जब तक होसला है मुजमे
मेरी इज्ज़त भी सलामत है
मुझे उस बेचारी निगाह से न देखो
मेरी ज़िन्दगी अभी सलामत है

मैं बहुत बंधी हूँ बेडियो में
कैसे उड़ने के ख़ाब देखूं
ज़रा कोई हाथ लगादे मुजको
मैं डरने लगती हूँ
इज्ज़त खो न जाए कहीं
आहें भरने लगती हूँ
इज्ज़त न जाने किस चिड़िया का नाम है
कभी मेरे कपड़ो को इज्ज़त कहते है
कभी मेरे लिबास की लम्बाई को
कभी मेरी जुकी निगाह से इज्ज़त का अंदाज़ा होता है
कभी देखते नहीं सोच की गहराई को
काबिल हूँ मैं कितनी कोई जानने की कोशिश नहीं करता
कितनी आगे बढ़ गई हूँ किसी को फरक नहीं पड़ता
मेरी निगाहे ज़मीन को छोड आस्मां पर टिक गई है
फिर भी ज़मीन पर रेंगते कीड़ो से डरना पड़ता है मुझे
मैं कमज़ोर हूँ कईओं से जानती हूँ मैं
पर बेबस होकर राहों पर चलना पड़ता है मुझे

शायद कभी न रोक पाऊं मैं खुद पर हुए अत्याचार को
पर बेचारी न समजना मुझे तो एहसान होगा
दर्द जो मुझे मिला है उसकी सजा होगी
पर जो बाँट न सको दर्द तो बडाना न इसे तो एहसान होगा
शरीर मेरा मिटटी है दर्द होगा मेरी रूह को
वो दर्द जो समज सके बस वोही सामने आए तो एहसान होगा

थोड़ी आजादी दो मुझे उड़ने की
मेरी इज्ज़त बनाओ मेरी सोच को
मेरी इज्ज़त बनाओ मैं जो कर सकती हूँ
मेरी इज्ज़त बनाओ जो मैं बन सकती हूँ
मेरी इज्ज़त बनाओ जो होसला है मुजमे
मेरी इज्ज़त बनाओ जो शक्ति है मुजमे
मेरी इज्ज़त बनाओ मेरी चाह को
मेरी इज्ज़त बनाओ मेरी राह को
मेरी इज्ज़त बनाओ मेरी रूह को
शरीर तो मिटटी है जो जरुरी है ता जो जिंदा रह सकू
इज्ज़त बनाओ उसको जिससे जीती हूँ मैं

इज्ज़त बनाओ मुजको, मेरी रूह को


Tuesday, 4 March 2014



वो अक्सर मुझसे आकार खाबों में मिला करता है
मेरे आंसुओं को कभी मुस्कराहट में बदल दिया करता है
क्या हुआ जो चेहरा उसका देख नहीं पाती
एहसास तो उसका हर वक़्त पास ही रहता है
क्या हुआ जो बातें उसकी सुन नहीं पाती
प्यार का इजहार तो हर वक़्त खास ही रहता है

वो अक्सर आकार खाबों में मुझसे बातें किया करता है
ज़िन्दगी को खाबों की तस्वीर बना दिया करता है
कभी पूछती हूँ उससे क्या सिर्फ खाबों में मिलोगे तुम
जवाब में वो मुझको उलझा सा दिया करता है

जो ज़िन्दगी में आ गया मैं तो ख़ाब किसके देखोगी
मुझमे मंजिल पा गई तो राह किसकी देखोगी
खाबों में आया हूँ तो ज़िन्दगी में भी आऊंगा
वक़्त की मार है तुझे फिर कभी सम्जाऊंगा
जिस राह पे चल रही है उस राह पे चलती रह
मिलूँगा तुझे इन्ही पर ऐतबार करती रह
अभी ख़ाब का हिस्सा हूँ, कभी ज़िन्दगी का बन जाऊंगा
कैसा ये रिश्ता है अपना तुझे तब समझा पाउँगा